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कविता हूँ मैं

जिसे सुनकर न जाने किस परिकल्पना में प्रवेश कर जाते हो तुम।

हाँ, वही जिसे सुनकर प्रेम की अनुभूति होती है,

तो कभी मन में क्रांति का भाव आता है।

वही जिसमें नायिका, नायक की याद में वियोग से भरी होती है,

जहाँ पथिक अपने पथ की तलाश में चलता जाता है।

हाँ! वही कविता हूँ मैं।



वही कविता जिसके माध्यम से

अपने आक्रोश को,

मन में छुपे विरोध को,

करते हो व्यक्त अपनी कलम की स्याही से।

हाँ! मैं वही हूँ जिसमें माता की ममता और वात्सल्य की प्रधानता है,

जिसमें मीरा की कृष्ण भक्ति है,

तो कवि सुर के सागर है।



तुलसी का गौरव ग्रंथ हूँ मैं,

तो प्रसाद की खड़ी बोली भी मैं।

कवियों ने जो रचा वह शक्तिकाव्य मैं,

दिनकर ने जो लिखा वह ओज भी मैं,

और उन्होंने जनमानस को जो लगाई 

वो पुकार भी मैं।

कोमल श्रृंगारिक भावनाओं को

अभिव्यक्त करने वाली कविता भी मैं।


वही कविता -

मिलता जिसमें है समाज का भावबोध,

होता है जिसमें निसर्ग उत्पादनों का चित्रण।

हाँ! वही कविता हूं मैं।


वही कविताएं जिस ने रचा इतिहास,

एवं दिया अपने स्तर का बलिदान

और संचार कर दिया जनमानस में देशभक्ति का भाव।

वही कविताएं जिसमें दिखती है सुभद्रा की राष्ट्रीय चेतना के भाव,

बिना तलवार से लड़े हुए युद्धों का हाल।



वीरांगनाओं की गौरव गाथा हूँ मैं,

समाज का आइना और चित्रण भी मैं,

अनकही बातों का किस्सा मैं,

राष्ट्र की प्रियतमा भी मैं,

और नवागंतुकों की सारथी भी मैं।

हाँ! वही एक कविता हूँ मैं।



..अनिषा पटेल मोना

 
 
 

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©Wordcraft, The Literary Society, Ramjas College, University of Delhi

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