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कुछ भी होगा ना जाया


वो जो स्याह रातों में


ख्वाब सजाते हो तुम


सच कहो कैसी पहेली


बनाते हो तुम


चांद तारों को छूने की


तमन्ना जो है


ये हौसला कहाँ से लाते हो तुम


है यकीं जो इतना खुद पे तुम्हें


देखा है सपने वो भी बड़े


कहो कैसे करते हो सब


बुनते हो ख्वाब बिना मतलब


ना रूकना ना झुकना आता तुम्हें


चले जा रहे हो, कहाँ जाना तुम्हें?


है कोई क्या मंजिल या है बस फसाना


सुनाओ हमें भी कोई एक तराना


अरे देखो ना तुम भी


क्या किये जा रहे हो


रिश्तों को छोड़कर


जिए जा रहे हो


रूको जरा रूक कर देखो इधर भी


छंटा है अंधेरा और उगा है सूरज भी


करो अब तुम वो सब, जो तुम करने थे आये


मंजिल है पास अब देखो दूर जा ना पाये


लगा दो अब सबकुछ जो भी है तुम्हारा


हो आये यहाँ तक है आगे किनारा


बस एक दांव और है तुमको लगाना


फिर स्याह रातें जो काटी


जो लोगों को खोया


यकीं मानो मेरा


कुछ भी होगा ना जाया

 
 
 

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©Wordcraft, The Literary Society, Ramjas College, University of Delhi

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