ये गलियां ये बस्ती दुबकती दीवारें ,
दिशाओं में गूंजते रुदन सी नजारें ,
यूं जुगनू सितारों से महफिल सजी है ,
फिर भी कुहाॅसो से सीटी बजी है ,
इस शंका आशंका में किस्में मिलावट ,
लगता है जीने की इच्छा जगी है ।
इस बलिदान की है एेसी आहुति ,
स्वाति लिए सीप हो जाए मोती ,
इधर से उधर को जिधर से जिधर को ,
मानो वह दुबकी सी रोती खड़ी है ।
नदियों ने कह दी समंदर से मिलकर ,
आओ बह चलें संग फिर साथ होकर ,
ये मिलना मिलाना और चुंबन - आलिंगन ,
देखो उम्मीदों की लड़ी जड़ी है ।
न एहसास तुमको तनिक भी है मेरा ,
बता दूं तुझे तेरी खोजी का फेरा ,
यूं चलने में भी आ जाती क्यों रुकावट ,
जबकि मुझे तुमसे मिलना जरू है ।
ये शहरों की रौनक मुबारक तुम्हीं को ,
उस उजड़ी सी बस्ती की आदत है मुझको ,
पता ही नहीं था कहां हम मिलेंगे ,
मिलने - मिलाने की मुश्किल खड़ी है।
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