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दीप-सा संकल्प

अपनी धरा को त्याग कर, जो नव पथ का राही है,

हृदय में लिए गहन स्वप्न, जो कर्म का सिपाही है।

हर उस व्यक्ति के निमित्त, यह श्रद्धा-सुमन अर्पित,

जिसने दीप-सा संकल्प ले, महान यात्रा आरंभ की है।


दूर ग्राम की स्मृतियाँ, मन के कोने में बसी हैं,

पर आशा की शृंखला, नयनों में नई कसी है।

नगर-महानगर की इस भीड़ में, स्वयं को गढ़ने आया है,

अपनी क्षमता से वह, एक नया इतिहास रचने आया है।


वह जानता है कि एक-एक पग, कितना मूल्यवान है,

हर संघर्ष की गाथा में, उसका आत्मबल महान है।

जब पहला दीप जलाया था, था केवल एक विचार,

अब उसने बुन लिया है, सफलता की अटूट श्रृंखला का हार।


समर्पण और साहस से पूर्ण, यह उसकी अद्भुत गाथा है,

जो 'वहाँ' से 'यहाँ' आया, वही कर्मवीर कहलाता है।

सभी प्रवासी जनों को मेरा नमन, उनके गहरे उद्यम को,

जो करते हैं आलोकित, इस विशाल संसार के तम को।

 
 
 

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©Wordcraft, The Literary Society, Ramjas College, University of Delhi

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